एक गुरु भाई की जुबानी
जयगुरूदेव
सन् 1998 सात जुलाई गुरूपूर्णिमा शाम का सत्संग चल रहा था हम और एक हमारे गांव के गुरूभाई आगे खड़े होकर सत्संग सुन रहे थे और भी प्रेमी खड़े थे क्योंकि मंच के सामने काफी दूर तक सुबह की वारिश का जलजमाव हुआ था,एकदम आगे बैठकर सत्संग सुनने वाले आशिकों को जमीन नहीं मिली तो पानी में खड़े थे,बाकी प्रेमी दांये बांये सूखी जमीन पर बैठे थे। पानी वाला हिस्सा आधे से अधिक अभी खाली था जो स्वामी जी के ठीक सामने था,इसी दौरान पीछे से एक सेवादार भाई फावड़ा लेकर मिट्टी काटने लगे ताकि पानी निकल जाय,स्वामी जी तुरंत बोल पड़े कि,,मत काटो, मेड़ बांध दो और पानी में खड़े होकर सत्संग सुन लो, ( हाथ लहराते हुए) पानी में खड़े होकर सत्संग सुनने वालों का हिसाब अलग से होगा। सत्संग समापन के बाद सब अपने-अपने घर चले गए और मैं वहीं से जयपुर चला गया अपने काम से और पांच महीने बाद फिर भण्डारा कार्यक्रम होते हुए जब गांव लौटा तो वही गुरूभाई मिलते ही बोले कि हमारा तो अलग से हिसाब हो गया, हमने कहा भाइ कैसे हुआ, तो कहने लगे कि बड़ी भयंकर बाढ़ आई थी 98 में और गांव से बाजार दस किलोमीटर (बड़हलगंज) पूरा पानी ही पानी बाजार से सामान लेकर नांव में सवार होकर हम लोग गांव लौट रहे थे अन्धेरा हो चला था दो किलोमीटर सफ़र बाकी रह गया था और नाव डूब गई...... विकट स्थिति थी कोई उम्मीद नहीं थी लहरों के बीच बहते उतराते जयगुरूदेव चिल्लाते मालिक की दया से सब किसी न किसी किनारे जाकर लगे और जिनको तैरना नहीं आता है वो भी बच गए। हे मालिक!हे प्रभू!!आपको पुकारने वाले हर प्रेमी का हिसाब ऐसे ही हों 😥 दीनदयाल प्रभू जयगुरूदेव 👏 जयगुरूदेव
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