"सकल जीव जग दीन दुखारी"



जयगुरुदेव

निचले जामो की हालत तो अलग हैं, मनुष्य के जामे के बारे में अच्छी तरह विचार करके देख लें , कितने दुःख और कितनी मुसीबते हर रोज़ उठानी पड़ती है।  हालाँकि इस जामे को सृष्टि का सरताज (टॉप ऑफ दी क्रिएशन) कहते हैं, ऋषि-मुनि इसे नर नारायणी देह कह कर समझाते हैं, मुसलमान फ़कीर इसे अशरफुल-मख़लूक़ात कहकर याद करते हैं और देवी देवता भी इस जामे को तरसते हैं, लेकिन फिर भी इस जामे में बैठकर कोई भी सुख और शांति प्राप्त नही कर सकता । कोई बीमारी के हाथों दुःखी हो जाता हैं , कोई बेरोजगारी से तंग आ जाता हैं। किसी के संतान पैदा नही होती , वह दिन-रात तड़पता है, तो कइयों को बाल-बच्चों ने दुःखी कर रखा है। किसी को कर्ज चुकाना है , वह चिंता और फिक्र में सारी रात सो नही सकता, किसी को कर्ज़ा वसूल करना है , वह सारा दिन कचहरी में परेशान हो रहा है। हम सर्दी और गर्मी में रोज सड़को पर रोज कंगालों की हालत देखते हैं कि किस तरह पेट की खातिर वे चिल्ला रहे हैं। इसी तरह हस्पतालों में जाकर बीमारों की चीखें सुनते है कि किस प्रकार वह बेचारे दुःखी हो रहे हैं। जेलखानों में कैदियों की हालत देख कर पता चलता है कि वे कितना दुःख उठा रहे है । मतलब यह है कि संसार मे जिधर भी नज़र उठा कर देखे चारो ओर दुख ही दुःख मुसीबते ही मुसीबते नज़र आती हैं। कभी भी रेडियो चलाकर या अखबार पढ़कर देख ले , दुनिया मे किसी न किसी कौम ,मज़हब या मुल्क के लड़ाई-झगड़े चलते ही रहते है , कितने गरीबो का खून हो रहा हैं । जिस दुनिया मे ये हालत हैं कि लोग रोटी कपड़े की खातिर, दिन-रात भटकते फिरते हैं और मौत का डर हमेशा बना रहता हैं कि पता नही किस समय और किसके हाथो आ जाये, उस नगरी के अंदर हम सुख और शांति कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? 

गुरु नानक साहिब जी का कथन है ;-
"नानक दुखिया सब संसार"।।

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :-

"सकल जीव जग दीन दुखारी"।।

जयगुरूदेव


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